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SESSION: 20th August, 2025 {SATSANG}

|| नारायण नारायण ||

         

20th August 2025 बुधवार सत्संग का सारांश । सत्संग आपके लिए राज दीदी के दैविक सत्संग के खजाने से लाया गया है।


राज दीदी ने सत्र की शुरुआत मैं चौंथे सूत्र (रिलेशनशिप) के बारे में बताया। राज दीदी ने चौथा सूत्र इंफोसिस कंपनी के नारायण मूर्ति जी की धर्मपत्नी श्रीमती सुधा मूर्ति जी के माध्यम से साझा किया। श्रीमती सुधा मूर्ति जी लिखती है, जून की एक सुबह मैंने हमेशा की तरह कनाडा न्यूज पेपर उठाया, उस दिन 12वीं के बच्चों का नतीजा डिक्लेयर हुआ था। न्यूज़पेपर के फ्रंट पेज पर परीक्षा में जिन बच्चों ने टॉप किया था उनकी तस्वीरे छपी हुई थी, पीछे के पेजीस बाकी विद्यार्थियों के रोल नंबर्स की लिस्ट और उनके मार्क्स के साथ भरी हुई थी। सुधा मूर्ति जी लिखती है कि मैं हमेशा से टॉपर्स के प्रति आकर्षित रही हूं। टॉपर होना सिर्फ यह नहीं जताता है कि वह व्यक्ति बहुत इंटेलिजेंट है, साथ ही यह भी बताता है कि वहां तक पहुंचाने के लिए उस व्यक्ति ने कितनी मेहनत और कितना त्याग किया होगा। मैं एक प्रोफेसर के घर में पली बड़ी हूं और खुद भी एक टीचर हूं, इसलिए इस बात को अच्छी तरह से समझती हूं। न्यूज़पेपर में छपी हुई टॉपर्स की फोटोस मैं ध्यान से देखने लगी, उसमें से एक टॉपर की फोटो पर से मेरा ध्यान ही नहीं हट रहा था। उसका 8th रैंक आया था और उसके बारे में सिर्फ यही जानकारी मिली कि उसका नाम हनुमान थापा था। अगले दिन फिर से मैंने कनाडा न्यूज पेपर पढ़ने के लिए उठाया और यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई कि आज फिर से फ्रंट पेज पर हनुमान थापा का फोटो छपा था, उसके इंटरव्यू के साथ। उसका इंटरव्यू पढ़ने से मुझे पता चला कि हनुमान थापा रामपुरा नाम के एक छोटे से गांव का है, वह एक कूली का बेटा है, 5 भाई बहनों में वह सबसे बड़ा है और दिन भर में उसके पिताजी 40 रूपए कमाते हैं। उसका इंटरव्यू पढ़कर मुझे यह भी पता चला कि वह अपनी पढ़ाई आगे जारी नहीं रख पाएगा क्योंकि वह एक छोटे से गांव रामपुरा का है और दूसरी बात उनके घर में कमाने वाले सिर्फ उसके पिताजी है जो दिन भर में 40 रूपए कमाते हैं। उन पैसों से उन लोगों को दाल रोटी भी संभव नहीं हो पाती है तो एजुकेशन कहां से पूरी होगी। सुधा मूर्ति जी लिखती है कि यह पढ़कर मेरे मन में उस होशियार विद्यार्थी के प्रति दया का भाव जाग गया। मैं ऐसे कई पेरेंट्स को जानती हूं जो अपने जीवन की सारी कमाई अपने बच्चों को अच्छा एजुकेशन देने में, अच्छा खिलाने में और अच्छा पहनने में लगा देते हैं, उसके बावजूद भी उनके बच्चे पढ़ते नहीं हैं। न्यूज़पेपर में छपी हनुमान थापा की फोटो के नीचे उसका पोस्टल एड्रेस छपा हुआ था। पोस्टल एड्रेस पर मेरी नजर पड़ते ही मैंने झट से पोस्टकार्ड लिया और उस पर दो लाइंस लिख दी। पहली लाइन यह थी कि मैं तुमसे मिलना चाहती हूं और दूसरी लाइन यह थी कि क्या तुम मुझसे मिलने बेंगलुरु आ सकते हो..?? मैंने वह पोस्टकार्ड टेबल पर रख दिया, कि ऑफिस जाते वक्त पोस्ट कर दूंगी। मेरे पिताजी वॉक से आए और सारी बात समझ कर मुझे बोले कि यदि तुम सच में उस विद्यार्थी से मिलना चाहती हो तो पोस्टकार्ड के साथ कुछ रुपए भी भेजो, ताकि वह रुपए उसको आने-जाने में काम आए, साथ में एक जोड़ी कपड़े के लिए भी पैसे भेजो। मुझे पिताजी की बात जच गई और मैं पोस्टकार्ड मैंने एक लाइन और जोड़ दी कि यदि तुम मुझसे मिलने बेंगलुरु आओगे तो आने-जाने की और कपड़ों की व्यवस्था मैं कर दूंगी, मैंने वह लेटर पोस्ट करवा दिया। तीसरे दिन उसका जवाब आ गया, सिर्फ दो लाइन लिखी थी उसने, पहली लाइन में उसने लिखा था कि आपका धन्यवाद है कि आपने मुझे याद किया और दूसरी लाइन में उसने बेंगलुरु आने की मंशा जताई थी। तुरंत ही मैंने डाक से कुछ रुपए और मेरे ऑफिस का एड्रेस उसे भेज दिया। चौथे दिन हनुमान थापा मेरे केबिन के बाहर खड़ा हुआ था। सीधा सरल लड़का, थोड़ा घबराया हुआ था, शायद पहली बार बेंगलुरु आया था। उसकी अवस्था ऐसी लग रही थी जैसे एक गाय का बछड़ा अपनी मां से बिछड़ गया हो। वह एकदम दुबला पतला सा था लेकिन उसकी आंखों में जबरदस्त चमक थी। मैं सीधा अपने विषय पर आ गई कि तुम्हारे नतीजे से हम बेहद खुश हैं, तुम यदि आगे पढ़ना चाहते हो तो हमें बताओ, जहां पढ़ना चाहते हो और जब तक पढ़ना चाहते हो पढ़ो, सब हम स्पॉन्सर करेंगे। मैं फटाफट बोलती चली गई लेकिन उसने कुछ जवाब नहीं दिया। यह देखकर मेरे साथ बैठा मित्र मुझसे बोला इस तरह धड़ाधड़ बोलोगी तो उसे समझेगा कैसे। उसे शांति से समझाओ कि तुम्हारी मंशा क्या है और उससे कहो की अपने समय से जवाब दे। यही बात मैंने उसे शांति से समझाई और उसे कहा कि आराम से सोच समझकर मुझे जवाब देना। उस वक्त उसने कोई जवाब नहीं दिया और चला गया। उसी रात 9:00 बजे की बस से वह अपने गांव रवाना होने वाला था, गांव जाने से पहले वह मुझसे मिलने आया, उसने धीमी लेकिन मजबूत आवाज में मुझसे कहा कि मैं बिलारी के टीचर्स ट्रेंनिंग कॉलेज में अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहता हूं, उसने यह भी बताया कि वह कॉलेज उसके गांव से नजदीक है इसलिए वह उस कॉलेज में पढ़ना चाहता है। मैंने उससे कहा कि मैं पहले यह जानना चाहती हूं कि उस कॉलेज में वह विषय तो है ना जिस विषय में तुम्हें आगे पढ़ना है या सिर्फ वह कॉलेज तुम्हारे गांव के नजदीक है इसलिए तुम वहां पढ़ना चाहते हो, लेकिन वह एकदम फर्म था कि उसे आगे क्या करना है। आगे मैंने उसे सिर्फ इतना पूछा कि मुझे यह बताओ की हर महीने मुझे तुम्हें कितने रुपए भेजने होंगे और जिस कॉलेज में एडमिशन ले रहे हो उसमें हॉस्टल की व्यवस्था है क्या। उसका उत्तर था कि मैं आपको दो दिन में जवाब देता हूं। तीसरे दिन उसकी पोस्ट आया कि मुझे हर महीने लगभग 300 रुपए की जरूरत होगी। उसके पोस्ट में आगे लिखा था कि मैं और मेरा मित्र एक कमरा किराए पर लेने का सोच रहे हैं, ताकि रहने और खाने-पीने के खर्च मैं पैसों की बचत हो। सुधा मूर्ति जी लिखती है कि मैंने तुरंत डाक से 6 महीने के 18 सो रुपए उसे भिजवा दिए। 6 महीने गुजर चुके थे और अचानक से मुझे याद आया की हनुमान थापा को मुझे रुपए भेजने है। मैंने फिर से 1800 का ड्राफ्ट बनवा कर उसे पोस्ट कर दिया, तुरंत ही उसका धन्यवाद का पोस्ट आ गया। श्रीमती मूर्ति जी  लिखती है कि जिस लिफाफे में उसने लेटर भेजा था उसके भीतर कुछ रुपए भी थे। जब मैंने उसका लेटर ध्यान से पढ़ा तो उसमें लिखा था, मैंम यह आपकी अच्छाई है कि आप 6 महीने के रुपए एक साथ भेज देते हैं लेकिन पिछले दो महीने से मैं कॉलेज में नहीं, अपने घर में ही था क्योंकि एक महीना हमारे कॉलेज में स्ट्राइक थी और 1 महीने की छुट्टी थी। पिछली बार जो आपने मुझे 18 सो रुपए भेजे थे उसमें से मेरे पास 300 रूपए बचे हुए हैं, वह मैं आपको लौटा रहा हूं, कृपया इसे स्वीकार कीजिए। यह सुनकर माया दंग रह गई की इतनी गरीबी और इतनी ईमानदारी!! हनुमान थापा को यह अच्छे से पता था कि जो रुपए मैं उसे भेज रही हूं उसका हिसाब मेरे पास नहीं था और ना ही मैं भविष्य में कभी उससे हिसाब मांगने वाली हूं, इसके बावजूद भी उसने वह पैसे लौटाए, उसके पिता दिन भर में 40 रूपए कमाते है और 300 रूपए उनके लिए बहुत बड़ी रकम हैं। श्रीमती मूर्ति जी लिखती है, इससे मुझे यह एहसास हुआ कि ईमानदारी किसी एक व्यक्ति की प्रॉपर्टी नहीं है। मैं समझ नहीं पाई कि उस विद्यार्थी की ईमानदारी पर किस तरह प्रतिक्रिया व्यक्त करूं। मैंने सिर्फ मंदिर जाकर भगवान के सामने हाथ जोड़कर उस गरीब विद्यार्थी के लिए प्रार्थना की कि है ईश्वर उस हनुमान थापा का जीवन सुख, शांति और समृद्धि से भर दे!!

        

राज दीदी ने आगे कहा, अगला सूत्र ईमानदारी और वफादारी!! ईमानदारी और वफादारी के साथ पैकेज डील है बरकत, बढ़ोतरी, प्रचुरता। यदि आप ईमानदारी और वफादारी के राह पर चलते हैं तो यह चीज खुद ब खुद आपके जीवन में आ जाती है, यदि आपने ईमानदारी और वफादारी का दामन छोड़ा तो यह सारी चीज अपने आप ही आपके जीवन से चली जाती है। आपको यदि ऐसा लग रहा है कि आपके जीवन में बरकत और बढ़ोतरी नहीं हो रही है तो आपको अपने आपको चेक करना होगा कि आप ईमानदारी और वफादारी के रास्ते से हट तो नहीं गए।

        

राज दीदी ने आगे एक प्रसंग के बारे में बताया जो कि सालों पुराना है लेकिन इस प्रसंग से मिलता जुलता है। मैं और मेरे जीवन साथी मोदी जी, और हमारे एक परिचित और उनकी पत्नी, हम दो कपल कार से कहीं जा रहे थे। हमारे परिचित ड्राइविंग सीट पर थे और उनके बगल में मोदी जी थे, पीछे वाली सीट पर हम दोनों लेडिस बैठी हुई थी। रास्ते में एक टोल टैक्स आया, वहां का टोल 30 रूपए था। मोदी जी ने जैसे ही अपने जेब में पैसे निकालने के लिए हाथ डाला तो हमारे परिचित ने उन्हें रोक दिया, यह कहकर कि इस टोल नाके का पास है मेरे पास। पूछने पर बताया कि उनके पास कोई ओरिजिनल पास नहीं है और वह सब जगह कोई कार्ड दिखा देते हैं। उनसे कुछ कहते उससे पहले ही टोल नाका आ गया और उन्होंने कार्ड दिखाकर स्पीड से अपनी गाड़ी आगे बढ़ा दी और बहुत खुश हो गए, कहने लगे कि मैं बहुत बार ऐसा करता हूं, 30 रूपए बच गए और आई एम वेरी हैप्पी। हमें मन में जरा भी अच्छा नहीं लग रहा था पर उस वक्त उन्हें कुछ बोलने की हिम्मत नहीं थी। तीन-चार घंटे बाद जब हम वापस लौट रहे थे तब रास्ते में एक मंदिर था, हमने वहां दर्शन किया और मंदिर के पीछे एक छोटा सा टी स्टॉल था, हम उस टी स्टॉल पर चाय पीने चले गए। आधा पौने घंटे बाद जब वापस आए तो गाड़ी टो होकर जा चुकी थी, हमारे परिचित 300 रूपए देकर गाड़ी छुड़वाकर लाए। राज दीदी ने आगे कहा, यह ध्यान रखें कि हमें ऐसा लगता है कि हम लोग बहुत स्मार्ट है, लेकिन प्रकृति हमसे भी ज्यादा स्मार्ट है। जैसे ही आपको लगे कि बरकत बढ़ोतरी और प्रचुरता में कहीं भी रुकावट आ रही है तो इमीडिएट चेक करिए कि कहीं हमने ईमानदारी और वफादारी का रास्ता छोड़ तो नहीं दिया है। यह बात हकीकत है कि जैसे ही आपने ईमानदारी और वफादारी की राह पर चलने का मात्र ठान भी लिया तो बरकत, बढ़ोतरी और प्रचुरता आपके जीवन में अपने आप जुड़ जाती है।

        

राज दीदी ने अगला सूत्र मिस्टर राघव के माध्यम से बताया। मिस्टर राघव लिखते हैं कि कुछ समय पहले की बात है, मैं अपने परिवार और दोस्तों के साथ हिल स्टेशन पर घूमने गया था। वहां एक घटना घटी जो मुझे आजीवन याद रहेगी। एक दिन ट्रिप के दौरान जब हम पहाड़ों पर घूम रहे थे तब अचानक ही मेरे बेटे का पैर फिसला और वह कीचड़ में जा गिरा। गिरने से उसे चोट तो नहीं आई लेकिन उसका ब्रांड न्यू ब्रांडेड जैकेट जो की काफी कीमती था और हमने खास तौर पर उसे उस यात्रा के लिए खरीदा था पूरा का पूरा कीचड़ में लतपत हो गया। अब सबसे पहले काम था उसकी जैकेट धुलवाना। राघव लिखते हैं कि सामने झरने के पास कुछ झोपड़ियां बनी हुई थी, वहां मेरी पत्नी राधिका को एक लड़की दिखाई दी, वह लड़की गरीब सी लग रही थी, राधिका ने उसका नाम पूछा, उसका नाम सना था। राधिका ने उससे पूछा कि क्या वह हमारा जैकेट धोकर सुखा देगी, ताकि शाम को हम उससे सूखा हुआ जैकेट ले लेवे और उसके एवज में उसे उसका महंताना दे देवे। जैसे ही उस लड़की ने हमें हामी भरी, राधिका ने उसे जैकेट थमा दिया और हम हमारे प्लान के मुताबिक साइट सीइंग के लिए चले गए। 6-7 घंटे बाद जब हम वापस वहां लौटे तब ड्राइवर ने वहीं गाड़ी खड़ी की जहां पर हमने सना को जैकेट थमाया था, लेकिन वहां पर हमें ना तो सना दिखाई दी, ना तो कोई और। चारों ओर देखने के बाद जब हमें कहीं भी सना दिखाई नहीं दी तो हमने सना के नाम से आवाज लगाना शुरू कर दिया लेकिन हमें कोई जवाब नहीं मिला। लिखते हैं राघव कि जब हमें कोई जवाब नहीं मिला तो हम विचलित हो गए और मेरा बेटा तो रोने लग गया कि मेरा नया का नया ब्रांडेड जैकेट तो गया। मैं और राधिका यह बात करने लगे कि उस लड़की ने हमें अच्छा बेवकूफ बनाया और हम भी बेवकूफ थे कि बिना जाने इतना कीमती जैकेट उसे दे दिया, इतना महंगा जैकेट कौन वापस करता है। लिखते हैं राघव कि अब हमने गरीबी पर बोलना शुरू किया कि गरीब लोग होते ही ऐसे हैं, इनसे मेहनत तो होती नहीं है, सब कुछ रेडीमेड चाहिए इनको। उनके हाथ में इतना महंगा जैकेट आया तो कोई भी दाम में बेचकर, पैसा लेकर, खा-पीकर उड़ा देंगे। लिखते हैं राघव कि हमने तो उस टैक्सी ड्राइवर को भी नहीं बख्शा, उसे खूब सुनाया क्योंकि वह भी वही का रहने वाला था। ताना मारते हुए आधा घंटा बीत गया, जब जैकेट मिलने के आसार नजर नहीं आ रहे थे और अंधेरा होने वाला था तब हमने होटल पर लौटना उचित समझा। फिर से गाड़ी में बैठ तो गए लेकिन कंटीन्यूअस उस ड्राइवर को खरी खोटी सुनाते ही जा रहे थे। लिखते हैं राघव, हमारी टैक्सी आधा किलोमीटर आगे बढ़ी होगी कि उस ड्राइवर ने टैक्सी साइड में रोकी, मैंने उससे पूछा कि क्या हुआ, उसने कहा मिरर में दिखाई दे रहा है कि कोई पीछे से टैक्सी रोकने का इशारा कर रहा है। मैं झट से यह देखने के लिए बाहर उतरा की पीछे से टैक्सी रोकने का इशारा कौन कर रहा है, देखा तो दूर से सना तेजी से दौड़ती हुई आ रही थी। वह पसीने में लतपत थी, उसकी सांस फूल रही थी, वह इतना भर ही बोल पाई कि बीबी जी आपका जैकेट, यह कहकर वह धम से जमीन पर बैठ गई, थोड़ा सुस्ताने के बाद उसने कहा कि बीबी जी आपका जैकेट बहुत अधिक कीचड़ में भरा हुआ था, उसे धोने में बहुत समय लग गया और धोने के बाद यदि मैं उसे पहाड़ के नीचे ही सुखा देती तो यह मोटा जैकेट वहां सुख नहीं पाता था क्योंकि वहां धूप नहीं थी और आप शहरी लोग हैं तो यहां की ठंड आप लोगों को सहन नहीं हो पाती और आपका बेटा बीमार पड़ जाता था, इसलिए मैं इसे सूखाने पहाड़ के ऊपर गई थी। लिखते हैं राघव कि वह बेचारी बच्ची, 6-7 घंटो तक बिना कुछ खाए पिए ऊपर पहाडों पर महज उस जैकेट को सूखाने के लिए बैठी रही। लिखते हैं राघव कि उसे लड़की ने कहा कि जब हम लोग उसे आवाज़ दे रहे थे तो उसे हमारी आवाज सुनाई दे रही थी और उसने जवाब भी दिया पर हम लोगों तक उसकी आवाज नहीं पहुंची। जब वह नीचे उतरी तब तक हम टैक्सी लेकर वहां से रवाना हो चुके थे और वह बेचारी लड़की दौड़ते दौड़ते हमारे पीछे आई, महज हमारा जैकेट देने के लिए। 

      

लिखते हैं राघव कि इस पूरे प्रसंग के बाद मुझे अंदर ही अंदर बहुत गिल्ट महसूस हुआ कि बिना कुछ सोचे समझे हमने उस लड़की के बाबत कितना कुछ कह दिया और कितना कुछ ड्राइवर को सुना दिया। राधिका ने कुछ रुपए और कुछ खाने का सामान उस लड़की के हाथ में थमाया और हम गाड़ी में आकर वापस बैठ गए। बैठ तो गए लेकिन जब मेरी नजर उसे टैक्सी ड्राइवर के तरफ गई तब उसके चेहरे पर खुशी थी, संतुष्टि थी और हम तो गिल्ट में भरे हुए थे। लिखते हैं राघव, उस दिन जीवन का बहुत बड़ा सबक सिखने को मिला कि कभी भी हमें दूसरों के बारे में बिना सोचे समझे नहीं बोलना चाहिए।


मुख्य शब्द : ईमानदारी, वफादारी, प्रचुरता, सीख। 


नारायण धन्यवाद

राज दीदी धन्यवाद

सादर सप्रेम सहित

स्वाति जोशी 🙏🙏

मलाड, मुंबई

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|| Narayan Narayan ||


The Divine Wednesday Satsang of 20th August 2025. The Satsang is brought to you from the Divine Treasure of Raj Didi‘s Divine Satsangs.

      

Raj Didi began the session by explaining the fourth principle ‘Relationship’. She shared it through the story of Infosys founder Narayan Murthy‘s wife, Mrs. Sudha Murthy. Mrs. Murthy writes: “One June morning, as usual, I picked up the Kannada Newspaper. That day, the results of the 12th grade students had been declared. On the front page were the pictures of the toppers, while the inside pages were filled with the roll numbers and marks of the rest of the students.


I have always been fascinated by toppers, because being a topper is not only about intelligence but also about the amount of hard work and sacrifice involved in reaching there. As I am from a professor‘s family and I myself is a teacher, I understand this well. As I looked closely at the toppers’ photos, my eyes got stuck on one boy, Hanuman Thapa, who had secured 8th rank. The next day, once again, I saw his picture on the front page, along with his interview. From the interview, I came to know that Hanuman Thapa was from a small village called Rampura. His father worked as a porter and earned only 40 Rupees a day. He was the eldest among five siblings. Though very intelligent, he would not be able to continue his Education due to poverty. Reading this, I felt deep compassion for the boy. I knew many parents who spent all their earnings on their Children‘s Education, food, and clothes, yet their children were not serious about studies. Below his photo was his postal address. Without a second thought, I wrote him a postcard :

1. I want to meet you.

2. Can you come to Bangalore to meet me..??

My father suggested I must also send some money for travel and clothes, so I added a line in the letter that his travel and clothing expenses would be taken care of.

Within three days, his reply came. It had only two lines :

1. Thank you for remembering me.

2. Yes, I will come to Bangalore.


Soon, he came to meet me in my office. A simple, shy boy, he looked nervous but his eyes were full of spark. I asked him if he wanted to study further, that I would sponsor his entire Education. At first, he did not reply. Later, before leaving for his village, he told me softly that he wished to study at Bilari Teacher‘s Training College, which was near his village.

After confirming the details, he wrote to me saying he would need about 300 Rupees a month. I immediately sent him 1800 rupees for six months. Later, when I sent another 1800 rupees, he returned 300 rupees, writing : “Madam, since the college had a one-month strike and one-month holiday, I stayed home. So, I did not spend the full amount. Please accept the remaining 300 rupees back.”


I was stunned! Such honesty in the midst of poverty! His father earned only 40 rupees a day, and yet he returned such a huge amount for them. It made me realize that honesty is not the property of any one person or class. I could only fold my hands before God and pray that Hanuman Thapa‘s life be filled with peace, prosperity, and happiness.

      

Raj Didi then explained: The next principle is Honesty and Loyalty. With honesty and loyalty comes a package of blessings, growth, and Abundance. If you leave honesty and loyalty, these automatically leave your life. If you feel stuck in life, check whether you have strayed from honesty and loyalty. 

     

Raj Didi further shared another story : ‘Years ago, I, along with my husband Modi Ji, and another couple, were travelling by car. At a toll gate where the fee was 30 rupees, our friend quickly showed a fake pass instead of paying. He felt happy about saving 30 rupees. But on our way back, his car was towed and he had to pay 300 rupees to release it. The lesson : We may think we are smart, but nature is smarter. Whenever you feel blockages in prosperity, check if you have left the path of honesty and loyalty.

     

Raj Didi then shared another story through Mr. Raghav. He wrote : “During a trip to a hill station with family and friends, my son slipped into mud. His brand-new expensive branded jacket got dirty. We asked a poor girl named Sana to wash and dry it for us in return for payment. When we returned after sightseeing, she was not there. We assumed she tricked us and began blaming poverty and even scolded the taxi driver. Later, while driving, the driver stopped and pointed out someone waving behind us. It was Sana, running breathlessly with the jacket. She explained that the jacket was too thick and muddy, so she washed it and carried it uphill where there was sun, sitting there all day to dry it properly, so that the boy wouldn‘t fall sick in the cold. We were filled with guilt for having judged her wrongly, while the driver had a smile of satisfaction on his face. That day, I learned a lifelong lesson : Never judge or speak negatively about others without knowing the truth.”


Key words : Honesty, Abundance, Lesson, loyalty.


Narayan Dhanyawad 

Raj Didi Dhanyawad

Regards

Mona Rauka 🙏😊


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